Thursday, 11 April 2013

मोबाइल पर हिंदी, बेहद आसान

आप सोच रहे होंगे कि इतना आसान क्‍यों हो गया हिंदी लिखना, लेकिन ये सच है. हां मैं आज तो बता रहा हूं वह अप्‍लीकेशन मल्‍टीमीडिया एंड्रायड फोन के लिए है. आप के पास एंड्रायड फोन है तो बस ये करें...............

-सबसे पहले गूगल एप्‍स को शुरू करें.

-सर्च ऑप्‍शन में जाकर गूगल हिंदी इनपुट लिखें, एक एप आ जाएगा, जिसके आगे लिखा हो गा फ्री डाउनलोड, अब इसे डाउनलोड करें.

-इंस्‍टाल करें.

-अब फोन की सेटिंग में जाएं

-लोकेल एंड टेक्‍सट में जाएं

-अब गूगल हिंदी इनपुट को एक्टिव करें.

- अब मैसेज बॉक्‍स या कहीं भी जाकर लिखें, यही की बोर्ड आ जाएगा, जिसमें आप अंग्रेजी में राम लिखेंगे तो वह हिंदी में तब्‍दील हो जाएगा, यादि ऑपशन नहीं चल रहा हो तो की बोर्ड के स्‍पेसबार के बगल में अ का बटन होगा, टच करें बस, चल उठेगा.

- तो अब से हिंदी लिखिए.

Monday, 27 February 2012

नेता बन रहे ‘अभिनेता’

अभिनेता तो लंबे समय से राजनीति में आकर नेतागीरी करते रहे हैं। कहीं जोरदार जीत तो कहीं शिकस्त भी हासिल करते रहे हैं, लेकिन राजनीति का दौर बदला है और दुनिया भी। चुनाव के इस महासमर में कई नेता भी अभिनेताओं की तरह ही अभिनयकर रहे हैं। कुछ रुप बदलकर(वेश-भूषा में बदलाव लाकर), कुछ हाव-भाव तो कुछ एंग्री यंगमैनजैसी छवि बनाकर।

15 फरवरी बुधवार को लखनऊ की एक जनसभा को ही ले लीजिए तो कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने जहां जनता से सीधा संवाद किया वहीं दूसरी ओर अपने ही नेताओं के नाम लिखे हुए कागज को विपक्षी दलों की लिस्ट बताकर फाड़ दिया। जनता तो इस अदा पर कुर्बान हो कर यही सोच रही थी कि राहुल के ऐसे तेवर तो यूपी की तस्वीर बदल देंगे, इस अभिनयका प्रभाव भी वहां मौजूद लोगों को तुरंत दिखाई दे रहा था। सभी इसी पर फिदा थे और राहुल के सवालों के जवाब भी दे रहे थे। इनके सवाल और जवाब तो अपनी जगह हैं ही राहुल को उन्हीं की अदा में सपा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव जवाब देते हुए सभाओं में कह रहे हैं कि राहुल जी गुस्से में कहीं मंच से न कूद जाएं। ऐसे ही लोकमंच का गठन करने वाले पूर्व सपा नेता भी जनसभाओं में दाढ़ी बढ़ाकर और विशेष टोपी लगा कर जनता से संवाद कर रहे हैं। कुछ अरसा पहले उनका कारपोरेट कल्चर में भी बड़ा दखल हुआ करता था और अब वह पिछड़े हुए पूर्वांचल की बात कर रहे हैं। इसकी शुरुआत हालांकि चुनाव की घोषणा और दलों से निकालेजाने और शामिल कराने की प्रक्रिया के बाद ही शुरू हो चुकी थी। बसपा से विधायक रहे शाहजहांपुर के ददरौल विधानसभा के विधायक अवधेश वर्मा तो इतने भावुक हो गए कि वह जनता के सामने ही अपने साथ हुए अन्याय का आरोप लगाकर रोने लगे। ऐसे ही नेताओं की बात करें तो सूची लंबी ही हो जाएगी लेकिन सच यही है नेता आजकल आपके बीच इसी प्रकार से हाव-भाव प्रकट कर रहे हैं।

चुनाव के कई प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला भी ईवीएम में बंद हो चुका है, लेकिन अवसर अभी भी आपके(मतदाताओं) हाथ है। आमतौर पर सभी क्षेत्रों से एक बात निकलकर सामने आती है कि मतदाता और नेता के आपस में इस प्रकार की वृहद मुलाकात के अवसर कम ही होते हैं, और सच कहें तो शायद पांच साल में एक यही मौका आता है जब नेता जी आपके इतने करीब होते हैं। ऐसे में इन अवसरों पर आपका भीड़ में या नेता जी की सभा में शामिल होना, जवाब देना और सवाल करना तो ठीक है लेकिन आपका भावुक होकर किसी के पक्ष में हो जाना शायद आपका और प्रदेश का भला न कर पाए। ऐसे में आप भी इन अभिनयों के दर्शक तो बनिये लेकिन मतदान से पहले इस प्रकार की यदा-कदा होने वाली सभाओं और इस समय हो रही बयानबाजियों की समीक्षा और अपने मत का महत्व भी समझिए।

Wednesday, 20 January 2010

अंर्तद्वंद


अंर्तद्वंद आज कल जो भी दिखता है परेशान दिखता है, वक्त ऐसा है बस इंसान ही नहीं दिखता है। जहां देखो बस ऐतबार नहीं दिखता है, इंसान कहता है बस प्यार नहीं मिलता है। मालिक को मजदूर दिखता है, मजबूरी नहीं, मजदूर को परिवार दिखता है पर प्यार नहीं मिलता है। गांवों से लेकर शहरों तक इंकार ही दिखता है, इकरार चाहिए तो वही अपना परिवार दिखता है। जहां देखता हूं बस हर इंसान बेकरार दिखता है, अकसर हर आदमी बस यही कहता है कि सब कुछ बिकता है।

Tuesday, 6 October 2009

गंगा ऐसे बहती ही हैं क्यों


आज सरकार भी आम मध्यम वर्ग की तरह ही व्यवहार कर रही है। ऐसा सच में हो रहा है हो ,सकता है कि विश्वास न हो रहा है, पर यह सच है। ऐसा नहीं है कि वह बहुत उत्कृष्ट काम कर रही है बस उसका उद्देश्य तो यह रह गया है कि भारत की आम जनता को सब्जबाग दिखाओ और अपना काम करते रहो।बस यही नही समझ में आता की फिर भी गंगा जी चुप क्यों हैं ?
सरकार का ऐसा काम देख के तो यही लगता है कि वही अंग्रेज काबिज हो गए हैं जो सिर्फ अपना हित देख रहे हैं।
सरकार एक बार फिर चिंता करती दिख रही है कि पतित पावनी गंगा को साफ सुथरा बनाया जाए और लोगों के उपयोग करने के काबिल बनाए जाए। गंगा भी उदासीन है, अब उसमें वह प्रतिशोध नहीं रहा नहीं तो अपना रास्ता वह खुद तलाशती ओर ऐसी विनाश लीला दिखाती कि कोई कुछ भी कहे उसे तो अपनी ही राह चलना है।
सरकार ने अब तक इस प्रकार की योजनाओं पर कुल मिलाकर अठ्ठारह हजार करोड़ रूपये खर्च कर दिए हैं लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है कि जिसको संतोषजनक कहा जा सके। बैठकें कम और काम ज्यादा किया जाता तो अधिक अच्छा होता लेकिन यहां सिर्फ बैठक करके लोगों को बरगलाया जा रहा है। हालांकि केवल सरकार मात्र ही जिम्मेदार नहीं है लोग भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं, लेकिन बात यह है कि सरकार मेहनतकश लोगों द्वारा अदा किए आयकर और अन्य मदों से प्राप्त मुद्रा से खिलवाड़ कर रही है।

Saturday, 28 March 2009

आईपीएल क्यों बने एनआरआईपीएल

आईपीएल तो केवल इंडियन पैसा लीग है कहीं भी करा लो पैसा मिलना चाहिए चाहे जैसे भी मिले चाहे देश की इज्जत रहे या मिटटी में मिल मिल जाए। अब क्या हमार देश इतना कमजोर हेा गया है कि हम अपने यहां खेलने वाले चंद खिलाड़ियों की सुरक्षा नहीं कर सकते। जरा सोचें ।

Wednesday, 18 February 2009

आम बजट में खास इंतजाम

आम बजट में खास इंतजाम
आम बजट कहने को तो आम आदमियों के लिए पेश किया जाता है पर इसमें आंकड़े छोड़ आम जन को मिलता ‘शायद ही कुछ है। देखने में आंकड़े भले सुकून दे सकते हों पर वास्तविकता के धरातल पर आज दाल 56 रूपए किलो तक पहंुच गई है। इसकी सुध लेने को कौन कहे हमारे नेताओं को वादों को झुनझुना पकड़ाने की आदत सी पड़ गई है।