आज सरकार भी आम मध्यम वर्ग की तरह ही व्यवहार कर रही है। ऐसा सच में हो रहा है हो ,सकता है कि विश्वास न हो रहा है, पर यह सच है। ऐसा नहीं है कि वह बहुत उत्कृष्ट काम कर रही है बस उसका उद्देश्य तो यह रह गया है कि भारत की आम जनता को सब्जबाग दिखाओ और अपना काम करते रहो।बस यही नही समझ में आता की फिर भी गंगा जी चुप क्यों हैं ?
सरकार का ऐसा काम देख के तो यही लगता है कि वही अंग्रेज काबिज हो गए हैं जो सिर्फ अपना हित देख रहे हैं।
सरकार एक बार फिर चिंता करती दिख रही है कि पतित पावनी गंगा को साफ सुथरा बनाया जाए और लोगों के उपयोग करने के काबिल बनाए जाए। गंगा भी उदासीन है, अब उसमें वह प्रतिशोध नहीं रहा नहीं तो अपना रास्ता वह खुद तलाशती ओर ऐसी विनाश लीला दिखाती कि कोई कुछ भी कहे उसे तो अपनी ही राह चलना है।
सरकार ने अब तक इस प्रकार की योजनाओं पर कुल मिलाकर अठ्ठारह हजार करोड़ रूपये खर्च कर दिए हैं लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है कि जिसको संतोषजनक कहा जा सके। बैठकें कम और काम ज्यादा किया जाता तो अधिक अच्छा होता लेकिन यहां सिर्फ बैठक करके लोगों को बरगलाया जा रहा है। हालांकि केवल सरकार मात्र ही जिम्मेदार नहीं है लोग भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं, लेकिन बात यह है कि सरकार मेहनतकश लोगों द्वारा अदा किए आयकर और अन्य मदों से प्राप्त मुद्रा से खिलवाड़ कर रही है।
सरकार का ऐसा काम देख के तो यही लगता है कि वही अंग्रेज काबिज हो गए हैं जो सिर्फ अपना हित देख रहे हैं।
सरकार एक बार फिर चिंता करती दिख रही है कि पतित पावनी गंगा को साफ सुथरा बनाया जाए और लोगों के उपयोग करने के काबिल बनाए जाए। गंगा भी उदासीन है, अब उसमें वह प्रतिशोध नहीं रहा नहीं तो अपना रास्ता वह खुद तलाशती ओर ऐसी विनाश लीला दिखाती कि कोई कुछ भी कहे उसे तो अपनी ही राह चलना है।
सरकार ने अब तक इस प्रकार की योजनाओं पर कुल मिलाकर अठ्ठारह हजार करोड़ रूपये खर्च कर दिए हैं लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है कि जिसको संतोषजनक कहा जा सके। बैठकें कम और काम ज्यादा किया जाता तो अधिक अच्छा होता लेकिन यहां सिर्फ बैठक करके लोगों को बरगलाया जा रहा है। हालांकि केवल सरकार मात्र ही जिम्मेदार नहीं है लोग भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं, लेकिन बात यह है कि सरकार मेहनतकश लोगों द्वारा अदा किए आयकर और अन्य मदों से प्राप्त मुद्रा से खिलवाड़ कर रही है।