अंर्तद्वंद आज कल जो भी दिखता है परेशान दिखता है, वक्त ऐसा है बस इंसान ही नहीं दिखता है। जहां देखो बस ऐतबार नहीं दिखता है, इंसान कहता है बस प्यार नहीं मिलता है। मालिक को मजदूर दिखता है, मजबूरी नहीं, मजदूर को परिवार दिखता है पर प्यार नहीं मिलता है। गांवों से लेकर शहरों तक इंकार ही दिखता है, इकरार चाहिए तो वही अपना परिवार दिखता है। जहां देखता हूं बस हर इंसान बेकरार दिखता है, अकसर हर आदमी बस यही कहता है कि सब कुछ बिकता है।
2 comments:
बढिया है.
kya sandeep bhai antardwandwa men fanse huye hain kya?sab kuchh ko sab kuchh kyon nahin saunp dete.mera mujhmen kuchh nahin jo kuchh hai so toya, tera tujhko saunpte kya lage hai mohe.
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