Tuesday, 6 October 2009

गंगा ऐसे बहती ही हैं क्यों


आज सरकार भी आम मध्यम वर्ग की तरह ही व्यवहार कर रही है। ऐसा सच में हो रहा है हो ,सकता है कि विश्वास न हो रहा है, पर यह सच है। ऐसा नहीं है कि वह बहुत उत्कृष्ट काम कर रही है बस उसका उद्देश्य तो यह रह गया है कि भारत की आम जनता को सब्जबाग दिखाओ और अपना काम करते रहो।बस यही नही समझ में आता की फिर भी गंगा जी चुप क्यों हैं ?
सरकार का ऐसा काम देख के तो यही लगता है कि वही अंग्रेज काबिज हो गए हैं जो सिर्फ अपना हित देख रहे हैं।
सरकार एक बार फिर चिंता करती दिख रही है कि पतित पावनी गंगा को साफ सुथरा बनाया जाए और लोगों के उपयोग करने के काबिल बनाए जाए। गंगा भी उदासीन है, अब उसमें वह प्रतिशोध नहीं रहा नहीं तो अपना रास्ता वह खुद तलाशती ओर ऐसी विनाश लीला दिखाती कि कोई कुछ भी कहे उसे तो अपनी ही राह चलना है।
सरकार ने अब तक इस प्रकार की योजनाओं पर कुल मिलाकर अठ्ठारह हजार करोड़ रूपये खर्च कर दिए हैं लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है कि जिसको संतोषजनक कहा जा सके। बैठकें कम और काम ज्यादा किया जाता तो अधिक अच्छा होता लेकिन यहां सिर्फ बैठक करके लोगों को बरगलाया जा रहा है। हालांकि केवल सरकार मात्र ही जिम्मेदार नहीं है लोग भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं, लेकिन बात यह है कि सरकार मेहनतकश लोगों द्वारा अदा किए आयकर और अन्य मदों से प्राप्त मुद्रा से खिलवाड़ कर रही है।

Saturday, 28 March 2009

आईपीएल क्यों बने एनआरआईपीएल

आईपीएल तो केवल इंडियन पैसा लीग है कहीं भी करा लो पैसा मिलना चाहिए चाहे जैसे भी मिले चाहे देश की इज्जत रहे या मिटटी में मिल मिल जाए। अब क्या हमार देश इतना कमजोर हेा गया है कि हम अपने यहां खेलने वाले चंद खिलाड़ियों की सुरक्षा नहीं कर सकते। जरा सोचें ।

Wednesday, 18 February 2009

आम बजट में खास इंतजाम

आम बजट में खास इंतजाम
आम बजट कहने को तो आम आदमियों के लिए पेश किया जाता है पर इसमें आंकड़े छोड़ आम जन को मिलता ‘शायद ही कुछ है। देखने में आंकड़े भले सुकून दे सकते हों पर वास्तविकता के धरातल पर आज दाल 56 रूपए किलो तक पहंुच गई है। इसकी सुध लेने को कौन कहे हमारे नेताओं को वादों को झुनझुना पकड़ाने की आदत सी पड़ गई है।

Monday, 2 February 2009

मंगलौर का रास्ता कहां जा रहा

मंगलौर का रास्ता कहां जा रहा है आज भारत का हर आदमी यही सोच रहा है ‍। भारत का सांस्क्रितिक स्वभाव क्या होगा यह हम ही तय करेंगे । क्योंकि हम एक जिम्मेदार भारत के नागरिक भी हैं और हमारा कर्तव्य भी बनता है कि देश की संस्कृति और संस्कार भी हमारे बनाए हों जिससे हम उसका सही पालन और पोषण कर सकें। हमें गंभीरता से सोचना चाहिए कि हम क्या रहे हैं और क्या करें।